गरुड़ पुराण अध्याय: 1 पहला अध्याय भगवान विष्णु तथा गरुड़ के संवाद में गरुड़ पुराण सारोद्रार का उपक्रम, पापी मनुष्य की इस लोक और परलोक में होनेवाली दुर्गति का वर्णन, दशगात्र के पिंडदान से यतनादेह का निर्माण

गरुड़ पुराण अध्याय: 1 पहला अध्याय भगवान विष्णु तथा गरुड़ के संवाद में गरुड़ पुराण सारोद्रार का उपक्रम, पापी मनुष्य की इस लोक और परलोक में होनेवाली दुर्गति का वर्णन, दशगात्र के पिंडदान से यतनादेह का निर्माण जहां जीवन है वहा मृत्यु भी निश्चित है। जो जन्म ग्रहण करता है। उसे समय आने पर मरण मारना भी पड़ता है उसे जन्म लेना पड़ता है। पुनर्जन्म का यही सिद्धांत है सनातन धर्म की अपनी विशेषता है जीवन की परिसमाप्ति मृत्यु से होती है। इस ध्रुव सत्य को सभी स्वीकार किया है। यह प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। इसीलिए कालमृत्यू से आक्रांत मनुष्य की रक्षा करने में औषध, तपस्या, दान और माता पिता एवं बन्धु बांधव आदि कोई भी समर्थ नहीं है। जीवात्मा इतना सूक्ष्म होता है कि जब वह शरीर से निकलता है उस समय कोई भी मनुष्य अपने चर्मचक्षुओ से देख नहीं सकता है यही जीवात्मा अपने कर्मो के भोगो को भोगने के लिए एक अगुष्ट पूर्व परिमित आतिवाहिक सूक्ष्म (अतिनिद्रिय) शरीर धारण करता है। जो माता पिता के शुक्र शोनित द्वारा बननेवाले शरीर से भिन्न होते है। इस अतिनिद्रिय शरीर से ही जीवात्मा अपने द्वारा किए गए धर्म और अधर्म के परिणाम स्वरूप सुख और दू:ख को भोगता है। तथा इसी सूक्ष्म शरीर से पाप करनेवाली मनुष्य याम्यमार्ग से यातनाएं भोगते हुए यमराज के पास पहुंचते है और धार्मिक जन प्रसन्नतापूर्वक सूखभोग करते हुए यमराज के पास जाते है। साथ ही यह बात भी ध्यान देने योग्य है। कि केवल मनुष्य मृत्यु के पश्चात् आतिवाहिक सूक्ष्म (अतिनिद्रिय) शरीर धारण करता है और उसी शरीर को यमपुरुषों के द्वारा याम्यपथ से यमराज के पास ले जाया जाता है। अन्य प्राणियों को नहीं ले जाया जाता है। क्योंकि अन्य प्राणियों को यह सूक्ष्म शरीर प्राप्त ही नहीं होता है। वे तो तत्काल दूसरे योनि में जन्म पा लेते है। पशु पक्षी आदि नाना तियर्क योनियों के प्राणी मृत्यु के पश्चात् वायुरूप में विचरण करते हुए पुन: किसी योनि विशेष में जन्म ग्रहण हेतु उस योनि के गर्भ में आ जाते है। केवल मनुष्य को अपने शुभ और अशुभ कर्म को अच्छा भूरा परिणाम को इस्लोक और परलोक में भोगना पड़ता है। अपने कर्मो के फलस्वरूप मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा सूक्ष्म शरीर धारण कर के स्वर्ग और नरक को भोगता है। तत्पश्चात् उसका पुन जन्म होता है या उसे मोक्ष प्राप्ति होती है। भारतीय मनीषा ने परलोक के दर्शन पर विशद विवेचना प्रस्तुत की है। हमारे शास्त्रों पुराणों में मृत्यु का स्वरूप, मारणसन्त व्यक्ति की अवस्था और उनके कल्याण के लिए अंतिम समय में किए जानेवाले कृत्यों तथा विविध प्रकार के दानों आदि का निरूपण हुआ है। साथ ही मृत्यु के बाद के औधर्वे दैहिक संस्कार पिंडदान ( दशगात्र विधि निरूपण ) दर्पण, श्राद्ध , एकादशाह, सपिंटिकरण, अशोचादि निर्णय, कर्मविपाक, पापों के प्रयाचित विधान आदि वर्णित किया गया है। इस में नरकों यममार्ग और यममार्ग पड़नेवाली वैतरणी नदी, यम सभा तथा चित्रगुप्त आदि के भवनों के स्वरूपो का भी परिचय दिया गया है। इस प्रकार स्वर्ग, वैकुंठादी लोको के वर्णन के साथ ही पुरुषार्थ चतुष्टय - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने के विविध साधनों का निरूपण हुआ है और जन्म और मरण के बंधनों से मुक्त होने के लिए आत्मज्ञान का प्रतिपादन भी प्राप्त है। औधर्व दैहिक कृत्य पितरों को मुक्ति प्रदान करनेवाली पुत्रविषयक अभिलाषाको पूर्ण करनेवाला तथा इस्लोक और परलोक में सुख प्रदान करनेवाला है जो इस पवित्र प्रेत कल्प को सुनता है सुनता है। वे दोनों ही पाप से मुक्त हो जाते है। और कभी ही दुर्गति को नहीं प्राप्त होते है। इसलिए समस्त दू:खोकों विनाश करनेवाले तथा धर्म, अर्थ, दान और मोक्ष - इस चतुविध पुरुषार्थ को प्राप्त करनेवाले इस गरुड़ पुराण प्रेत कल्प को विशेष प्रयत्न कर के अवश्य ही सुनना चाहिए। पहला अध्याय भगवान विष्णु तथा गरुड़ के संवाद में गरुड़ पुराण सारोद्रार का उपक्रम, पापी मनुष्य की इस लोक और परलोक में होनेवाली दुर्गति का वर्णन, दशगात्र के पिंडदान से यतनादेह का निर्माण श्लोक: 1 धर्म ही जिसका सुदढ़ मूल है। वेद जिसका स्कंध ( तना ) है। पुराणरूपी शाखाओं से जो समुद्र है। यज्ञ जिसका पुष्प है और मोक्ष जिनका फल है। ऐसे भगवान मधुसूदन रूपी पादप- कल्पवृक्ष की जय हो || 1 || श्लोक: 2 देव क्षेत्र में नैमिशारण्य में स्वर्गलोक की प्राप्ति की कामना से शौनकादी ऋषियों ने एक बार सहस्त्रों वर्ष पूर्ण होनेवाला यज्ञ प्रारंभ किया || 2 || श्लोक: 3 एक समय प्रात: काल के हवनादी कृत्यों का संपादन कर के उन सभी मुनियों ने सत्कार किए गए असनासिल सूतजी महाराज से आदरपूर्वक यह पूछा || 3 || श्लोक: 4 मुनियों ने कहा - ( हे सूतजी महाराज ) आपने सुख देनेवाले देवमार्ग का सम्यक निरूपण किया है। इस समय हम लोक भयावह यममार्ग के विषय में जानना चाहते है || 4 || श्लोक: 5 आप सांसारिक दुःखो को और उस कलश के विनाशक साधनों को तथा इस लोक और परलोक के कलोशो को यथावत वर्णन करने में समर्थ है। ( अतः उनका वर्णन कीजिए ) || 5 || श्लोक: 6 सूतजी बोले - मुनियों आप लोक सूने! मै अत्यन्त दुर्गम यममार्ग के विषय में कहता हूं। जो पुण्यात्मा जनों के लिए सुखद और पापियों के लिए दु:खद है || 6 || श्लोक: 7 गरूडजी के पूछने पर भगवान विष्णुजी ने जैसा कुछ कहा था। में उसी प्रकार से आप लोको संदेह की निवृति के लिए कहूंगा || 7 || श्लोक: 9 गरुडजी ने कहा - हे देव ! आपने भक्तिमार्ग का अनेक प्रकार से मेरे समझ वर्णन किया है और भक्तों को प्राप्त होनेवाली उत्तम गति के विषय में भी कहा है || 9 || श्लोक: 10 अब हम भयंकर यममार्ग के विषय में जानना चाहते है। हमने सुना है कि आपकी भक्ति से विमुख प्राणी वहीं नर्क में जाते है। || 10 || श्लोक: 11 भगवान का नाम सुगमतापूर्वक लिया जा सकता है जिभहा प्राणी के वंश है तो भी लोक नर्क में जाते है ऐसे अधम मनुष्य को बार बार धिक्कार है। || 11 || श्लोक: 12 इसलिए हे भगवान ! पापियों को जो गति प्राप्त होती ह तथा यममार्ग जैसे वे अनेक प्रकार के दुःख प्राप्त होते है उसे आप मुझ से कहें || 12 || श्लोक: 13 भगवान बोले - हे पक्षिन्द्र! सुनो, में उस यममार्ग के विषय में कहता हूं। जिस मार्ग से पापिजन मार्ग की यात्रा करते है और जो सुननेवालों के लिए भी भयावह है। || 13 || श्लोक: 14 हे ताक्ष्य, जो प्राणी सदा पाप परायण है दया और धर्म से रहित है जो दुष्ट लोको की संगति में रहते है। सत् - शास्त्र और सत्संग गति से विमुख है ||14|| श्लोक: 15 जो अपने को स्वयं प्रतिष्ठित मानते है अहंकारी है तथा धन और मान के मद से चूर है आसुरी शक्ति को प्राप्त है देवी संपति से रहित है ||15|| श्लोक: 16 जिनका जीत अनेक विषय में आसक्त होने से भ्रांत है जो मोह के जाल में फंसे है और कामनाओं के भोग में ही लगे है। ऐसे व्यक्ति अपवित्र नर्क में जाते है। ||16|| श्लोक: 17 जो लोक ज्ञानशील है। वे परम गति को प्राप्त होते है। पापी मनुष्य दू:खपुर्वक यम यातना प्राप्त करता है। ||17|| श्लोक: 18 पापियों को इसलोक में जैसे दु:ख की प्राप्ति होती है और मृत्यु के पश्चात् वे जैसे यम यातना को प्राप्त होते है उसे सुनो ||18|| श्लोक: 19 यथोपर्जित, पुण्य और पाप के फलो को पूर्व में भोगकर कर्म के संबंध से उसे कोई शारीरिक रोग हो जाता है। ||19|| श्लोक: 20 मानसिक रोग और शारीरिक रोग से युक्त तथा जीवनधारण करने की आशा से उत्कठिंत उस व्यक्ति की जानकारी के बिना ही सर्प की भांति बलवान काल उसके समीप आ पहुंचता है। ||20|| श्लोक: 21 उस मृत्यु की सम प्राप्ति की स्थिति में भी उसे वैराग्य नहीं होता, उसने जिनका भरण पोषण किया था उन्ही के द्वारा उसका भरण पोषण होता है वृद्धा वस्था में कारण विकृत रूपवाल और मरणाभिमुख ||21|| श्लोक: 22 वह व्यक्ति घर में अवमानपूर्वक दी गई वस्तु को कुत्ते की भांति खाता हुआ जीवन व्यतित करता है। वह रोगी हो जाता है। उसे मंदाग्नि हो जाता है और उनका आहार तथा उनकी सभी चेष्टाएं कम हो जाती है ||22|| श्लोक: 23 प्राणवायु के बाहर निकलते समय आंखे उलट जाते है नाड़ियां कफ से रुक जाती है उसे खाशी और श्वास लेने में प्रयत्न करना पड़ता है तथा कष्ट से घूर घूर से सब्द निकले लगते है। ||23|| श्लोक: 24 चिंतामग्न स्वजनों से घिरा हुआ तथा सोया हुआ वह व्यक्ति कालपोश के वशीभूत के कारण बोलने पर भी नहीं बोलता || 24|| श्लोक: 25 इस प्रकार कुटुंब के भरण पोषण में ही निरंतर लगा रहेनेवाला, अजीतेंद्रिय व्यक्ति अंत में रोते बिलखते बंधु बांधवों के बीच उत्कट वेदना से संज्ञा शून्य होकर मर जाता है। ||25|| श्लोक: 26 हे गरुड़, उस अंतिम क्षण में प्राणी को व्यापक दिव्य दृष्टि प्राप्त हो जाती है जिस से वह लोक परलोक को एकत्र देखने पगता है। अंत: चकित होकर वह कुछ भी कहना नहीं चाहता ||26|| श्लोक: 27 यमदूतों के समीप आने पर सभी इन्द्रियां विकम हो जाती है। चेतना जड़ीभूत हो जाती है और प्राण चलायमान हो जाता है ||27|| श्लोक: 28 आतुरकाल में प्राणवायु के अपने स्थान से चल देने पर एक क्षण भी एक कल्प के समान प्रपित होता है और सौ बिंछुओ के डंक मारने से जैसी पीड़ा होती है वैसी पीड़ा का उस समय अनुभव होने लगता है। ||28|| श्लोक: 29 वह मरणासन्ना व्यक्ति फन उगलने लगता है और उनका मुख लार से भर जाता है। पपिजनों के प्राणवायु अधोद्वार गुदामार्ग से निकल जाता है ||29|| श्लोक: 30 उस समय दोनों हाथो में पाश और दण्ड धारण किए नग्न, दांतो को कटकटाते हुए क्रोधपूर्ण नेत्रवाले यम के भयंकर दूत समीप आते है। ||30|| श्लोक: 31 उनके केश ऊपर की और उठे होते है वे कौए के समान काले होते है और टेढ़े मुखवाले होते है उनके नख आयुधकी भाती होते है उन्हें देखकर भयभीत हदयवाला वह मरणासन्न प्राणी मल मूत्र का विसर्जन करने लगता है ||31|| श्लोक: 32 अपने पांच भौतिक शरीर से हाय हाय करते हुए निकलता हुआ तथा यमदूतों द्वारा पकड़ा हुआ वह अंगुष्ठ मात्र प्रमाण का पुरुष अपने घर को देखता हुआ ||32|| श्लोक: 33 यमदूतों के द्वारा यतनादेह से ढक कर से गले में बलपूर्वक पाशो से बांधकर सुदूर यम मार्ग पर यातना के लिए उसी प्रकार से ले जाया जाता है। जिस प्रकार राजपुरूष दंडनीय अपराधी को ले जाते है। ||33|| श्लोक: 34 इस प्रकार ले जाए जाते हुए उस जीव को यम के दूत तर्जना कर के डराते है और नरकों के तीव्र भय का पुन: पुं: वर्णन करते है। ||34|| श्लोक: 35 यमदूत कहते है- हे दुष्ट, शीघ्र चल! तुम यमलोक जाओगे, आज तुम्हे हम सब कुम्भीपाक आदि नरक में शीघ्र ही ले जायेंगे। ||35|| श्लोक: 36 इस प्रकार यमदूतों की वाणी तथा बंधु बांधो का रुदन सुनता हुआ वह जीव जोर से हाहाकार कर के विलाप करता है और यमदूतों के द्वारा प्रताड़ित किया जाता है ||36|| श्लोक: 37 यमदूतों की तर्जनाओ से उसका हदय विदिर्न हो जाता है। वह कापने लगता है। रास्ते में उसे कुते काटते है और अपने पापो को स्मरण करता हुआ वह पीड़ित जीव यम मार्ग में चलता है ||37|| श्लोक: 38 भूख और प्यास से पीड़ित होकर सूर्य दावाग्नी एवं वायु के झोकों से संतप्त होते हुए और यमदूतों के द्वारा पिठकर कोड़ेसे पिटे जाते हुए उस जीव को तपी हुई बालुका से पूर्ण तथा विश्राम रहित और जल रहित मार्ग पर असमर्थ होते हुए भी बड़ी कठिनाई से चलाना पड़ता है। ||38|| श्लोक: 39 थककर जगह जगह गिरता और मुर्च्छित होता हुआ वह पुन: उठकर पपिजनों की भांति अंधकार पूर्ण यमलोक में ले जाया जाता है ||39|| श्लोक: 40 दो अथवा तीन मुहूर्त वह मनुष्य वह पहुंचाया जाता है और यमदूत उसे घोर नरक यातनाओं को दिखाते है ||40|| श्लोक: 41 मुहूर्त मात्र में यम को और नरकीय यातनाओं भय को देखकर वह व्यक्ति यम की आज्ञा से आकाश मार्ग से यमदूतों के साथ पुन: इस लोक में मनुष्य लोक में चला आता है। ||41|| श्लोक: 42 मनुष्य लोक में आकर अनादि वासना से बद्ध वह जीव देह में प्रविष्ट होने की इच्छा रखता है किन्तु यमदूतों द्वारा पकड़कर पाश में बांध दिए जाने से भूख और प्यास से अत्यंत पीड़ित होकर रोता है। ||42|| श्लोक: 43 हे तक्ष्य! वह पात की प्राणी पुत्रो से दिये हुए पिंड तथा आतुरकाल में दिये हुए दान को प्राप्त करता है तो भी उस नास्तिक को तृप्ति नहीं होती ||43|| श्लोक: 44 पुत्रादी के द्वारा पापियों उदेश्य से किए गए श्राद्ध, दान तथा श्रध्दाजंलि उस के पास ठहरती नहीं। अंत: पिंड दान का भोग करने पर भी वे क्षुधा से व्याकुल होकर यम मार्ग में जाते है। ||44|| श्लोक: 45 जिनका पिंडदान नहीं होता, वे प्रेत रूप में होकर कल्प पर्यन्त वन में बहुत दू:खी होकर भ्रमण करते रहते है ||45|| श्लोक: 46 सैकड़ों करोड़ों कल्प बीत जाने पर भी बिना भोग किए कर्मफल का नाश नहीं होता और जब तक वह पापी जीव यातनाओं का भोग नहीं कर लेता तबतक उसे मनुष्य शरीर भी प्राप्त नहीं होता ||46|| श्लोक: 47 हे पक्षी! इसलिए पुत्रको चाहिए कि वह दस दिनों तक प्रति दिन पिंडदान करें। हे पक्षी श्वेष्ट ! वे पिंड प्रति दिन चार भागों में विभक्त होते है। ||47|| श्लोक: 48 उन में दो भाग तो प्रेत के देह के पांच भूतो की पुष्टि के लिये होते है तीसरा भाग यमदूतों को प्राप्त होता है और चौथा भाग से उस जीव को आहार प्राप्त होता है ||48|| श्लोक: 49 नौ रात दिनों में पिंड को प्राप्त कर के प्रेत का शरीर बन जाता है और दस वे दिन उसमें बल की प्राप्ति होती है। ||49|| श्लोक: 50 हे, खग! मृत व्यक्ति के देह के जल जानेपर पिंड के द्वारा पुन: एक हाथ लंबा शरीर प्राप्त होता है, जिस के द्वारा वह प्राणी यमलोक के रास्ते में शुभ अशुभ कर्मो के फल को भोगता है ||50|| श्लोक: 51 पहले दिन जो पिंड दिया जाता है जिस से उनका सिर बनता है दूसरे दिन के पिंड से गरदन और कंधे तीसरे दिन के पिंड से हदय बनता है श्लोक: 52 चौथे दिन के पिंड से पीठ बनता है पांचवें पिंड से नाभि छठे ओर सातवें पिंड से कमर और गंदे उतपन्न होता है श्लोक: 53 आठवें पिंड से जांघे और नौवें पिंड से घुटने और पैर बनते है। इस प्रकार से नौ दिन में देह को प्राप्त कर के दसवें पिंड से उसकी भूख और प्यास ये दोनों जाग्रत होती है श्लोक: 54 इस पिंडज शरीर को प्राप्त कर के भूख और प्यास से पीड़ित जीव ग्यारहवे और बारहवे दो दिन भोजन करता है। श्लोक: 55 तेरहवें दिन यमदूतों के द्वारा बंदरो की तरह बांधा हुआ वह प्राणी अकेला यम मार्ग में जाता है। श्लोक: 56 हे खग ! मार्ग में मिलनेवाली वैतरणी को छोड़कर यमलोक के मार्ग की दूरी का प्रमाण छियाशी हजार योजनहै श्लोक: 57 वह प्रेत प्रतिदिन रात दिन में दो सौ सैंतालीस योजन चलता है। ||57|| श्लोक: 58 मार्ग में आए हुए इन सोलह नगरों को पार कर के पातकी व्यक्ति धर्मराज के भवन में जाता है। श्लोक: 59 1. सौम्यपुर 2. सौरीपुर 3. नगेन्द्र भवन 4. गन्धर्व पुर 5. सैलागम 6. क्रोचपुर 7. क्रुरपुर 8. विचित्र भवन 9. बह्यापदपुर 10. दु:खद पुर श्लोक: 60 11. नाना क्रंद पुर 12. सुतप्त भवन 13. रौद्र पुर 14. पयोवर्षणपुर 15. सिताढ़य पुर 16. बहुभाती पुर को पार कर के इन के आगे यमपुरी में धर्मराज का भजन स्थित है। श्लोक: 61 यमराज के दूतो के पाशो से बंधा हुआ पापी जीव रास्ते भर में हाहाकार करता रोता हुआ अपने घर को छोड़कर के यमपुरी को जाता है । गरुड पुराण : ॐ भगवते वासुदेवाय नमः

Post a Comment

0 Comments